अहसास
हवाओं की तरह तेरा मुझे छू जाना ,
जिस्म को मेरे जैसे महका जाना ।
बारिश की बूंदों सा वो अहसास ,
दिल को जैसे गहरे तक भिगो जाना ।
बेबसी का आलम न हमसे छिपाया गया
याद है होश में ही मदहोशी का खो जाना
रूह तक अल्फाज ढूंढने लगे हैं मुझे ,
मुमकिन है ख्वाब में ही तुझको पा जाना
बेनाम सी मोह्हबत दगा दे जाती है ,
मुश्किल है दिल को मायूसी से बचा पाना
फर्ज तुमसे मोह्हबत का न निभाया गया
ऐ खुदा कैसा है ये बेखुदी का फसाना ।
वर्षा वार्ष्णेय अलीगढ़