कविता

मुहब्बत…..

कोशिशें तो बहुत की हमने
तुमसे दूर चले जाने की

पर इसकदर
तुम्हारी चाहत में मजबूर हुए
चाहकर भी दुरी बना न सके

सहते रहे सारे सितम तुम्हारे
फिर भी,
चाहत का चराग़ दिल से
बुझ न सका

उफ….
ये मुहब्बत भी क्या चीज है
वेबफाओं से भी वफा करती है

भूल जाता है दिल दर्देजख्म को
और उसकी एक इनायत पे
खिंचे चले आते हम…

सबकुछ भुलाकर फिर से….
उसी रास्ते की तलाश में
जहाँ मिले थे दो जवां दिल

सच्ची मुहब्बत देता है वक्त
फिर से एक नई शुरुआत का
तभी तो….
मुहब्बत करने वालों की जिंदगी
होती है औरो से जुदा…
दर्द में भी हसीन….

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]