कविता

रिश्ते…..

माँ बाप मरते हैं..
तो, सिर्फ वे ही नहीं मरते;
उनके साथ-साथ ,
कई रिश्तों की भी मौत हो जाती है।

धूमिल हो जाते हैं, धीरे-धीरे;
अपनेपन के मधुर रिश्ते,
मोतियों से झरझराते लफ्ज,
बेरुखी के शब्द तलाश लेते हैं।

शून्य हो जाते हैं,
अपनत्व के सुकोमल एहसास,
कड़ियाँ रिश्तों को जोड़ने वाली,
जर्जर ढहने सी लगती है।

खोखले नींव पर टिके,
दिखावे के नाममात्र ये रिश्ते,
बस एक..
आजमाइश बनकर रह जाती है।

गुम हो जाते हैं कहीं,
रिश्तों के महकते जज्बात सारे,
वक्त के सिरहाने,
मतलबपरस्त नजर आते हैं।

जो देखते भी नहीं पीछे मुड़कर,
कोई अपना ,
रिश्तों को सहेजने के
जतन में लगा है।

नकार देते हैं,
रिश्ते के वजूद को,
बस मुस्कुराने भर की,
पहचान बनकर रह जाते हैं;
ये अनमोल रिश्ते, अनमोल रिश्ते।


*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]