दर्द
पेन का ढक्कन यदि गुम हो जाए
मन बेचैन हो जाता है
आमदनी कई गुना हो
और सोच की दूसरा खरीद लेंगे
मगर अपनापन
तो अपनापन ही रहता
कितने शब्द तरासे
कितना ही लेखा जोखा लिखा
ता उम्र तक पेन ने
संग तुम्हारे दुःख सुखों के संग
वो तुम्हारा मर्म जानती
मगर कह नहीं पाती
वो विचारों से करती रहती संघर्ष
जैसे स्त्री ससुराल की उत्पीड़नता को
कभी नहीं बताती अपने बाबुल को
झूठी हंसी लिए खुश रहती
घूम हने का तो दर्द पूछा जा सकता
मगर , डूबने का डूबने का दर्द किस्से छिपाए
डूबने /घूम हो जाने का दर्द सामान होता
मगर घूमी हुई चीजे अक्सर मिल जाती
डूबी हुई की केवल मिलती है यादें
और मिलते वेदना के स्वर
जो बाटे जाते है एक कहानी के तरह
एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी
— संजय वर्मा ‘दृष्टी ‘
मनावर (धार )