“बच्चे होते स्वयं खिलौने”
सीधा-सादा, भोला-भाला।
बचपन होता बहुत निराला।।
बच्चे सच्चे और सलोने।
बच्चे होते स्वयं खिलौने।।
पल में रूठें, पल में मानें।
बच्चे बैर कभी ना ठानें।।
किलकारी से घर गुंजाते।
धमा-चौकड़ी खूब मचाते।।
टी.वी. से मन को बहलाते।
कार्टून इनके मन भाते।।
पापा जब थककर घर आते।
बच्चे खुशियों को दे जाते।।
तुतली भाषा में बतियाते।
बच्चे बचपन याद दिलाते।।
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(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)