ग़ज़ल
नए चेहरों की कुछ दरकार है क्या ।
बदलनी अब तुम्हें सरकार है क्या ।।
बड़ी मुश्किल से रोजी मिल सकी है ।
किया तुमने कोई उपकार है क्या ।।
सुना मासूम की सांसें बिकी हैं ।
तुम्हारा यह नया व्यापार है क्या ।।
इलेक्शन लड़ गए तुम जात कहकर ।
तुम्हारी बात का आधार है क्या ।।
यहां पर जिस्म फिर नोचा गया है ।
यहां भी भेड़िया खूंखार है क्या ।।
बड़ी शिद्दत से मुझको पढ़ रहे हो ।
मेरा चेहरा कोई अखबार है क्या ।।
हिजाबों में खरीदारों की रौनक ।
गली में खुल गया बाज़ार है क्या ।।
बहुत दिन से कसीदे लिख रहे हैं ।
कलम में आपके भी धार है क्या ।।
कदम उसके जमीं पर अब नहीं हैं ।
हुआ कुछ चांद का दीदार है क्या ।।
तबस्सुम पर तेरे हैरत हुई है।
गमों का हो गया भरमार है क्या ।।
महज मजहब मेरा पूछा था उसने ।
कहा तू देश का गद्दार है क्या ।।
— नवीन मणि त्रिपाठी
मौलिक अप्रकाशित