अस्तित्व
आँधियों के वेग से दिन रात भागना
अपने प्रतिरूप अस्तित्व रिश्ते झाकना.
कुछ से तनाव ले कुछ मन बना नाता
यूँ ही जीवन लगा हर क्षण चला जाता.
हाड़ -मास गात हूँ तूफानों में बढ़ना जानी
तवाही में भी सदैब अपनी दोष गति मानी.
जो काम लिया हमेशा मन से किया ठानी
बना मुझसे नीड़ पर अस्मिता सबने पहचानी.
आज शक के घेरे खड़ी डरती दुनिया जगाती
अपने जज़्बातों के अनगिनत रंगों में खो नहाती.
जिंदगी का सार हर पल ढूढती बढती सी जाती
कब हकीकत मेरी समझ आये ये सोच बहलाती.
रहू खामोश अहसासों जुवान में बसी हैं प्रेम धारा
गम परिक्षाओ में तप सा निखरा जीवन सा सहारा.
— रेखा मोहन १६/८/२०१७