खेल जो चल रहा मुहब्बत का
खेल जो चल रहा मुहब्बत का
ये नया ढंग है अदावत का
हर किसी ने नकाब ओढा है
झूठ पर सत्य का शराफ़त का
सच भला याद क्यूँ रहे उनको
चढ़ गया है नशा सियासत का
मुफ़लिसी का कहीं नही चर्चा
अब ज़माना है सिर्फ दौलत का
दर्द कुछ और बढ गया जबसे
उसने पू़छा पता शराफ़त का
माँगने से नही मिले हक़ तो
रास्ता सिर्फ़ है बगावत का
सोच कर खूब कीजिये बंसल
अब भरोसा किसी कि चाहत का
सतीश बंसल
१६.०६.२०१७