तेरे रूह की पैरहन
मेरी रूह
तेरे रूह की
पैरहन में लिपटे
खामोश फ़िज़ा में
कुछ इस तरह सिमटे
दिल की ख़िलाफ़त
एक-एक लम्हें की अदायगी
तेरे यादों की सिलवटें
मुझमें मुझी को करें जुदा
धड़कनों की आहटें
साँसों की ये बंदिशे
इश्क़ और यही दीवानगी
तेरे वादों पे मिटते
राहत को तरसे
आँखों की सुर्ख़ मिलावटे
अश्कों का सैलाब
ज़माने की नज़र में आवारगी
तेरे दर्द के बिखरें छींटे
ख़ुशी के पलों पे ठहरें
तन्हाई कांटे न कटे
हर्फो से जाने क्यों उलझे
तेरे अहसास को पलटे
खामोश ख्वाहिशों को
शाम के पहर…लिखते रहे
रूह के पैरहन में …लिपटे
नंदिता में सिमटे तेरे रूह की सादगी…..!!
— नंदिता तनुजा