दोहे
श्रृद्धा की थाली सजी, मनभावों के दीप।
स्वीकारो प्रभु वंदना, अंतस करो सुदीप।।
रीति नीति सत साधना, मानव सेवा भाव।
जीवन में सब से रहे, सदा उचित बर्ताव।।
धन दौलत वैभव भले, मत देना जगदीश।
इतनी विनती है नही, झुके बदी से शीश।।
सतकर्मीं धारा बहे, जीवन में अविराम।
समय पड़े आऊँ सदा, दीन दुखी के काम।।
अंतस में सदभावना, वाणी में सम्मान।
सबको आदर दूँ सदा, और सभी को मान।।
धर्म कर्म पर ही सदा, बना रहे विश्वास।
कथनी करनी में नही, रहे विरोधाभास।।
ज्ञान दीप उजियार से, रहे नही तम शेष।
जीवन भर पनपे नही, लालच ईर्ष्या द्वेष।।
वैचारिक बदलाव से, बदलेंगे हालात।
कर्तव्यों के साथ हो, अधिकारों की बात।।
बंसल कर्ता भी वही, और वही करतार।
भवसागर से नाव को, वही लगाता पार।।
सतीश बंसल
२१.०८.२०१७