भले कुछ कह रहे हो तुम सियासत और ही कुछ है
भले कुछ कह रहे हो तुम सियासत और ही कुछ है
तुम्हारी हर हकीकत की हकीकत और ही कुछ है
मुहब्बत तुम करोगे सोचकर हैरान हूँ बेहद
मुझे पक्का यकीं है ये शरारत और ही कुछ है
बनाए और तोड़े है कई रिश्ते कई नाते
तुम्हारी दोस्तों से यार चाहत और ही कुछ है
नये किस्से नये सपने कहानी है नयी हर सब
बताते और हो पर यार हसरत और ही कुछ है
धरम के नाम पर बस ढ़ोंग केवल ढ़ोंग करते हो
बताते हो जिसे रब की इबादत और ही कुछ है
लगाकर टोपियाँ कोई दुशाला ओढ़कर निकला
दिखावा बंदगी का है हकीकत और ही कुछ है
मुसलमां सिख इसाई पारसी हिन्दू नही मुस्लिम
कहूँ सच देश की असली मुसीबत और ही कुछ है
सतीश बंसल
२८.०७.२०१७