सच की सब बेलें मुरझाई देखो झूठ फला है
सच की सब बेलें मुरझाई देखो झूठ फला है।
तथाकथित अपनों ने ही अपनो को ही खूब छला है।।
हर मुखड़े ने ओढ़ लिये है जब से छल के छद्म आवरण।
तब से हर घर के आँगन में छिड़ा हुआ है एक नया रण।।
सूख रहा है शज़र प्यार का ईर्ष्या भाव पला है….
तथाकथित अपनों ने ही अपनो को खूब छला है…
ईंट नीव की बिसरा दी है कंगूरे का है अभिनंदन ।
कर्मवीर अपमानित होते छलियों का होता है वंदन।।
लालच की बढ़ती ज्वाला में सच का मान जला है…
तथाकथित अपनों ने ही अपनो को खूब छला है…
परंपराओं के आँगन के, संस्कार सब छूट गये हैं
ऐकाकी जीवन की जिद में, साँझे चूल्हे टूट गये हैं।
मन में कुंठा भरी पड़ी है कहना भला भला है…
तथाकथित अपनों ने ही अपनो को खूब छला है…
चंदन समझा हमने रज को, चंदन को हमने रज समझा।
अँधियारों का साथी निकला, जिसको हमने सूरज समझा।।
जब जब सूरज चढ़ा पाप का, तब अँधियार पला है…
तथाकथित अपनों ने ही अपनो को खूब छला है…
सतीश बंसल
२१.०८.२०१७