ग़ज़ल
बात शिकवे की’ करो तो वो’ खफ़ा होता है
किन्तु उनका कहा’ पेंचीदा’ गिला होता है |
आड़ होती गो’ की’ रक्षा, छिपा रहता मुखड़ा
मारना पीटना हत्या, वो’ जफ़ा होता है |
वो दुकाने खुली’ तो है हमें’ राशन देने
कुछ मिले या न मिले आबला’ पा होता है |
इश्क इज़हार करे तो सदा’ होता इनकार
शोख महबूबा’ का’ इनकार अदा होता है |
कास्तकारों से’ जो’ हासिल किया आँसू-ओ-नाला
उसको’ भी जोड़ लो’ वह सच्चा’ बहा होता है |
आशिकों के लिए’ वर्षात का’ मौसम वरदान
बादलों से ढका’ रूमानी’ फ़िज़ा होता है |
महफ़िलों में जवां’ दिल की अदाकारी कुछ
हास परिहास शरारत के’ सिवा होता है |
मजहबों में है’ जनम, भक्ति में’ पोषण ‘काली’
और कोई नहीं’ वह जंद खुदा होता है |
कालीपद ‘प्रसाद’