पेपर
छोटा मनु बहुत परेशान है। उसे पढ़ने का शौक जरा भी नहीं है । पढाई कोई शौक के लिए थोड़ी की जाती है भला ! वह तो जरुरी होती है। यह उसे समझ नहीं आती। उसे तो खीझ हो उठती है, जब घर का हर सदस्य उसे कहता ,’मनु पढ़ ले !’
हद तो ये भी है कि घर का पालतू , पिंजरे में बंद तोता भी पुकार उठता है ,’मनु पढ़ ले!’
मनु परेशान हुआ सोच रहा है। ये पढाई बहुत ही खराब चीज़ है। पैंसिल मुँह में पकड़ कर गोल-गोल घुमा रहा है।
” परीक्षा सर पर है , अब तो पढ़ ले मनु ! ” उसकी माँ का दुखी स्वर गूंजा तो मनु ने पैंसिल हाथ में पकड़ी।
” बहू , तुम सारा दिन इसके पीछे ना पड़ी रहा करो ! दूसरी कक्षा में ही तो है अभी। इसे तो मैं पढ़ाऊंगी , देखना कितने अच्छे नम्बर आएंगे। है ना मनु बेटा…. ,” दादी ने प्यार से सर दुलरा दिया।
तभी गली से गुजरते हुए कबाड़ इकट्ठा करने वाले ने आवाज़ लगाई , ‘ पेपर -पेपर। ”
मनु फिर परेशान हो गया कि उसे परीक्षा का किसने बता दिया।
” मनु पता है क्या , ये कबाड़ी पेपर -पेपर क्यों चिल्ला रहा है ! यह भी बचपन में पढता नहीं था। नहीं पढ़ा तो कोई ढंग का काम नहीं कर पाया , इसलिए गली -गली घूम कर , नहीं पढ़ने वाले बच्चों को डरता है कि नहीं पढोगे तो एक दिन यही काम करना पड़ेगा ! ” मनु के बड़े भाई ने गोल-गोल आंखे करते हुए मनु को डराया तो मनु ने सहम कर पैन्सिल उठा ली , उसके कानों में ‘पेपर-पेपर आवाज़ दूर जा रही थी।
उपासना सियाग