बाढ़
लगता है जल प्रलय हो गया ।
राहों पे अड़ गयी घाघरा ।
आँगन तक बढ़ गयी घाघरा।
चहुँ दिशि धूमिल जल फैला है,
खेतों पर चढ़ गयी घाघरा ।
मानो उजले कैनवास के –
कोई सारे चित्र धो गया ।
लगता है जल …………..
गाय से बछड़ा अलग बह गया ।
फिर दीनू का गेह ढह गया ।
घर खेतों में नही बचा कुछ ,
केवल बाकी कर्ज रह गया ।
शाम ढले तिरपाल के तरे ,
भूखा एक किसान सो गया ।
लगता है जल……………
दूर दूर तक केवल पानी ।
नदी हो गयी है दीवानी ।
विषम हो गया मानव जीवन,
मौत कर रही है अगवानी ।
सारी फसलें खाकर उपजा-
बीज प्रलय का, कौन बो गया ?
लगता है …………….
© डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी