समर्पिता
यों उसका नाम अर्पिता है, लेकिन अब उसको कोई भी अर्पिता नहीं कहता. अब वह सबके लिए समर्पिता ही है.
अर्पिता का पहला प्रेम योग था और इसी को उन्होंने बतौर करियर अपनाया. योग और मेडिटेशन में कई तरह के कोर्स करने के बाद अर्पिता अपना योग स्टूडियो चला रही थीं, लेकिन 22 साल की उम्र में एक हादसे ने उसको हमेशा के लिए वील चेयर का मोहताज कर दिया. हार मानना उसकी फ़ितरत नहीं थी. इस हादसे के बाद पहली बार वह दोस्तों के साथ आउटिंग के लिए वील चेयर पर निकलीं. उन्होंने देखा कि लोग अजीब निगाहों से देख रहे थे. अर्पिता को यह देखकर काफी खराब लगा, लेकिन तभी एक बुजुर्ग ने उनके कंधे पर हाथ रखकर कान में धीरे से कहा कि बेटी, आप बहुत मजबूत हो, कि इस हालत में भी दुनिया का सामना करने के लिए बाहर आई हो. ये शब्द जादू कर गए और अर्पिता जिंदगी को लेकर बेहर पॉजिटिव हो गईं. इन्हीं प्रेरक व सकारात्मक शब्दों के जादू से आज वह इंडियन स्पाइनल इंजरी सेंटर में बतौर फिजिकल ट्रेनर और योग इंस्ट्रक्टर काम कर रही हैं. वह सफल एथलीट हैं और योग व काउंसिलिंग के जरिए दूसरों की जिंदगी भी रोशन कर रही हैं.
प्रिय राजकुमार भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको लघुकथा बहुत अच्छी लगी. आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस कथा की गरिमा में चार चांद दिये हैं. अत्यंत सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार.
प्रिय राजकुमार भाई जी, यह जानकर अत्यंत हर्ष हुआ, कि आपको लघुकथा बहुत अच्छी लगी. आपकी लाजवाब टिप्पणी ने इस कथा की गरिमा में चार चांद दिये हैं. अत्यंत सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आ
आदरणीय बहनजी ! बेहद सुंदर सकारात्मक कहानी के लिए धन्यवाद । अर्पिता अपनी हिम्मत और अपनी लगन से योग के प्रति समर्पित होकर समर्पिता हो गयी । कहा भी गया है ‘ हिम्मत ए मर्दा , मदद ए खुदा । हिम्मत करनेवाले की मदद खुदा भी करता है और उस बुजुर्ग व्यक्ति द्वारा हौसला दिए जाने से उत्साहित अर्पिता समर्पिता बन गयी । बेहद सुंदर लघुकथा के लिए धन्यवाद ।