लघुकथा : बंधन
मनु ने अश्रुपूरित नयनो से खुद के लिखे पत्र को दुबारा पढ़ा और पेपरवेट से दबा कर रवि की मेज पर इस तरह रखा कि रवि के कमरे में घुसते ही पत्र पर नज़र पड़े !कल कुछ ज्यादा ही कहासुनी हो गयी थी दोनों में और रवि ने ऑफिस की झुंझलाहट उस पर निकली उसका हाथ उठ गया !
आज दृढ़ संकल्प किया था मनु ने,”नहीं रहना अब इस घर में,सारा दिन कोल्हू के बैल की तरह लगी रहूं फिर भी ना इज़्ज़त मिले और ना प्यार !”
चार जोड़ी कपडे बैग में रखे,अपना चश्मा,ए टी एम कार्ड,दवाई और दवा का परचा और थोड़ी रेज़गारी और सोचा ठीक साढ़े पांच बजे निकल जाऊँगी , मुन्ने और सासू माँ को ज्यादा देर अकेले रहना भी नहीं पड़ेगा, छः के आसपास रवि आ ही जायेंगे ! घडी पर नज़र डाली अभी साढ़े चार बजे हैं ! याद आया,आज तो बाई शाम को आने को मना कर गयी है ,तो खाना तो बना कर ही जाऊं !
खाना फटाफट बनाया,माँ को चाय और बिस्कुट दिए,मुन्ने का दूध बना कर प्यार से गोदी में लेकर पिलाया,गीली नेपी बदली ! सब काम निबटा,मुन्ने को एक बार निहारा और दहलीज से कदम बाहर रखने ही जा रही थी यकायक कदम किसी चुंबकीय शक्ति से रुक गए ……
मुन्ना चीख कर रो रहा था !शायद पलंग से गिर पड़ा था !