कविता : वही अलबेला है मौसम
वही अलबेला है मौसम वही बरसात की रातें !
हमारे भीगने से पहले भीगी – भीगी सब बातें !!
तुम्हें कुछ याद हैं वो चार दिन जो हमने जी लिये !
थे लबरेज़ ख़ुशियों से वो पल जो हमने पी लिये !!
वो सारी ज़िंदगी के ख़्वाब हमारे साथ जीने के !
लगाना वो तुम्हें हर बात पर हर बार सीने से !!
वो किस सिददत से मेरा चूमना माथे की हर शिकन !
वो तुमको देखते रहना बढ़ाना दिल की वो धड़कन !!
तुम्हारा बात -२ पे वो हँसना कहना अच्छा जी !
बढ़ाना हौसले मर जाना तुम पर मेरा जीते जी !!
वो भरना बाज़ुओं में वो लबों पे बोसा अहले जी !
वही मकरंद सा घुलना वो कहना अच्छा छोड़े भी !!
बहुत सुंदर थे वो पल ज़िंदगी के सन अठहत्तर था !
न कुछ भी ज़िंदगी कहता हूँ सच उनसे बहतर था !!
वो हर इक बात पर बेबात कहना मर गये हम तो !
बताओ ना बताओ जानेमन कुछ याद है तुमको !!
कहाँ कुछ याद होगा अब तुम्हें पर हम नहीं भुले !
ज़रा सा पास तुमने रखा ना फिर कैसे हम जी ले !!
बड़ी मुश्किल घड़ी है आज मैं कुछ हूँ ना तुम कुछ हो !
मगर ये आस कहती है कि अभी कुछ हूँ मैं तुम कुछ हो !!
— मनवीर शर्मा (राज भोपाली)