ग़ज़ल
मुहब्बत में इन्सां को रब कह गये वो !
खुदा की क़सम क्या ग़ज़ब कह गये वो !!
थे शहर ए चमन के कुछ दस्तूर ऐसे !
चमन से बदन बर अदब रह गये वो !!
बुझी ना हो दिल की लगी दिल बुझाये !
है मुमकिन सुलगते ही सब रह गये वो !!
ज़रा दूर थी कुछ किनारों से कश्ती !
निकट कुछ किनारों से तब बह गये वो !!
मुहब्बत में इन्सां को रब कह गये वो !
खुदा की क़सम क्या ग़ज़ब कह गये वो !!
— मनवीर शर्मा (राज भोपाली)