कविता

प्यार की बहार

 
पूनम की रात,
तेरे प्यार की चांदनी जलाती है,
अमावस की रात,
दिल में अँधेरा कर जाती है,
यह चाँद तू क्यों है-
मेरे प्यार का ऐसा दुश्मन,
यह तीज की रात तो-
तेज़ खंजर बन कर,
मेरे इस सारे बदन को-
छलनी कर जाती है,
ऐ मेरे सनम तू आजा,
तो मैं चाँद को भी बता दूँ,
तू लाख सितम कर ले,
पर मेरे साजन के आने से —
मेरी इस ज़िंदगी की हर रात,
बहार बन जाती है, –जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया

जय प्रकाश भाटिया जन्म दिन --१४/२/१९४९, टेक्सटाइल इंजीनियर , प्राइवेट कम्पनी में जनरल मेनेजर मो. 9855022670, 9855047845