परिवर्तन की नाद
सुनो दस्तक …
चाहे परिवर्तन
अब नारी ।
बीता वो युग,
जब थी नारी
“केवल श्रद्धा ।
जो बन कठपुतली …
सिले होठों से
सुनती थी
मात्र आदेश ।
कभी बिष पीने का …
तो कभी विस्थापित होने का,
कभी पाषाण बनने का
तो कभी सती होने का ।
अब खोल किवाड़
ज्ञान – चक्षु के ।
खोखले मापदंडों की
उतार केंचुलि
दे मुखर चुनौती …
पितृ-सत्ता को
लांघ चारदीवारी
बन रही है नारी …
खुद की परमेश्वर ॥
अंजु गुप्ता