दर्द की दास्तां
शांत,
व्यवस्थित,
योजनाबद्ध शहर ।
लिए आगोश में,
प्राकृतिक नजारे।
कल तक था मैं…
इक स्मार्ट शहर ॥
आज …
नफ़रत की
आग में झुलसा,
रोता-बिखलता,
तहस-नहस,
सीने पे लिए
खून के छींटे,
इंसाफ की चाह में,
पहचानो मुझे …
कौन सा शहर हूँ मैं?
अंजु गुप्ता