खामोश हूँ मैं ,
खामोश हूँ मैं ,
अब शिकायत नहीं होती,
अब इस ज़माने में ,
किसी का ‘दिल’ समझने की
‘रिवायत ‘ ही नहीं होती ,
खामोश हूँ मैं ,
क्यों की मैं लड़ता नहीं
झूठों के झमेले में पड़ता नहीं,
मेरी ख़ामोशी ही मेरा उपचार है,
‘खता’ भूलने में ही उपकार है,
मेरी यह ख़ामोशी ही एक दिन
मुझे मेरा ‘सम्मान’ लौटायेगी
यह दुनिया तो हर सीधी बात का
बस उल्टा ही मतलब बतलायेगी
इसीलिए
खामोश हूँ मैं ,
अब शिकायत नहीं होती,
— जय प्रकाश भाटिया
वाह बहुत सुंदर।