मैं तिरंगा हूँ…!
मैं तिरंगा हूँ…!!
कल रास्ते में मुझे कोई मिला,
वह कल 16 अगस्त – 27 जनवरी कुछ भी हो सकता है।
नहाया हुआ था वह धूल में, लतपत मिट्टी से सना हुआ,
मैंने पूछा महाशय आप कौन हैं और क्यों इस तरह यहाँ पड़े हैं।
‘पड़े हैं’ यह शब्द तथाकथित बुद्धिजीवियों को खटकेगा,
जब उस शख्स का नाम पता चलेगा।
खैर उसने अपनी व्यथा, कथा और दुर्दशा का,
पूरा वर्णन सुनाया,
अपने सुनहरे इतिहास का संपूर्ण दर्शन बताया।
‘मैं कौन हूँ’ यह सवाल तुम मुझसे पूछते हो,
मैं पहचान हूँ तुम्हारी क्यों एक दिन याद कर भूल जाते हो।
मैं वो हूँ जिसके आगे माँ भारती के शेर सिपाही अपना शीश नवाते हैं,
मैं वो हूँ जिसे लगा सीने से खिलाड़ी अपना गौरव बढ़ाते हैं।
मैं ही हूँ वो जो बन सुमेरू कभी गगन चुमता है,
मैं ही हूँ वो जो बन हिमगिरि विशाल शत्रु को सरहद बताता है।
मैं ही हूँ वो बन कफन शहीद का सम्मान बढ़ाता हूँ,
मैं ही हूँ वो रंग तीन रंगों में रंगा मातृभूमि का मान बढ़ाता हूँ।
श्वेत, केसरी, रंग हरियाली का मधुर संदेश सुनाता हूँ,
धम्मचक्र बन गतिशील प्रगति का संदेश बताता हूँ।
मैं ही कर धारण सब धर्मों के प्रतीक चिन्ह को,
सर्वधर्म समभाव की नीति बताता हूँ,
धर्म-जाति, काल, प्रदेश प्रतीक ‘तिरंगा’ कहलाता हूँ।
मुझे अपेक्षा नहीं तुमसे तुम कैसे मेरा सम्मान करोगे,
दिखावा एक दिन कर कैसी मेरी उपेक्षा करोगे।
क्या हक है तुम्हें पूछने का मैं कौन हूँ,
मैं बिछकर भी रास्ते पर रास्ता बताता हूँ।
धूल से कैसी शर्म, गर्व है मुझे
मैं स्वयं इस धरा की धूलि का तिलक लगाता हूँ।
रवि – किशोर
१८ अगस्त, २०१७