सामाजिक

जीवन दर्पण नारी (बेखबर फासलें)

       कुछ ही दिन बीते थे,  सिमी को अपने मायके आये,  लेकिन उसे इस बार का मायका आना, इक अरसा लगा बिता रही हो, सिमी खिड़की से बाहर लोगों की चहलपहल और परिंदों को देखे जा रही थीं।  घड़ी की सूइयों ने एकदम से चलना रोक लिया हो, पति के एक्सीडेंट से गुजर जाने से अचानक उसका जीवन उथल-पुथल हो गया था, ससुराल के लोग जो सिमी को आवाज़ दिये नही थकते थे, वो ही आज सिमी के तकलीफ़ मे हंस रहे थे।  वो दर्द में गुजर रही और कोई पूछने वाला नही , पति के न होने से उसके अस्तित्व का स्थान नही रहा।             सिमी समझ न पा रही थीं एकदम से पति के जाने के बाद सब कैसे बदला, समय ने क्या उपहास किया, नसीब को कोसती रही।  पति के क्रिया-कर्म के बाद ये परिस्थितियां शुरू हो गई और एक दिन सिमी की सास ने उसको बेगाने ढंग से आवाज दी, ” अरे ए- सुन जरा इधर आ।” सिमी समझ न पायी मां किसे कह रही, लेकिन जब नज़र से नज़र मिली तो ये आवाज सिमी को बुला रही थी, वो पास गयीं और बोली क्या मां जी बुलाया आपने?  बेहरी हैं क्या? तुझी को बुला रही, सुन-अपने मायके फोन लगा , और अपने बाप या भाई को.बोल तुझे आकर ले जाये, तेरे लिए इस घर में कोई जगह नही” इतना कहकर उसकी सास ने अपनी बात खत्म की।
सिर्फ आंसुओं में सिमट के रह गयीं थी, कि जिंदगी का इक सच हजारों झूठे अहसास के तले रौंदा जाता और जिनकी खबर हमें खुद को तोड़ने के बाद मिलतीं।  तभी पीछे से आवाज आयी, “सिमी दी चलो, मां बुला रही चाय बन गयी हैं, और सिमी चाय पीने के लिए चली जाती है ।
    आज भी समाज में कुछ ऐसा ही होता आ रहा जहां नारी के साथ …फिर भी सत्य यही आज की नारी न निर्बल नहीं, कुंठित नहीं..वो सिमी हो या कोई और …यही गर्व मुझ में भी कि मैं नारी हूँ…

मैं हूँ एक नारी

मुझे गर्व हैं नारी होने पर,

हर जन्म में

यही अस्तित्व पाना चाहूंगी..

स्त्री, लड़की, औरत

पहचान हैं ये सब शब्द मेरे,

माँ, बेटी, बहन, पत्नी, बहु

और भी अनेक रूप हैं मेरे

सभी अस्तित्व में जीना चाहूंगी..

गर्व हैं मुझे

हर रिश्तें में, खुद को संजोने पर,

दर्द, पीड़ा सब सहकर

फिर भी हंसकर प्यार लुटाने पर,

हर जन्म में

यही अस्तित्व जीना चाहूँगी..

समाज सोचे चाहे कुछ भी,

मेरा मान, स्वाभिमान डिगेगा नहीं,

मैं हूँ तो ये संसार हैं,

मेरा ये विश्वास कभी मरेगा नहीं,

इसलियें हर जन्म में

यही अस्तित्व पाना चाहूँगी..हाँ मैं एक नारी हूँ..!!

— नंदिता

तनूजा नंदिता

नाम...... तनूजा नंदिता लखनऊ ...उत्तर प्रदेश शिक्षा....एम॰ ए० एंव डिप्लोमा होल्डर्स इन आफिस मैनेजमेंट कार्यरत... अकाउंटेंट​ इन प्राइवेट फर्म वर्ष 2002से लेखन में रुचि. ली... कुछ वर्षों तक लेखन से दूर नहीं... फिर फ़ेसबुक पर वर्ष 2013 से नंदिता के नाम से लेखन कार्य कर रही हूँ । मेरे प्रकाशित साझा संग्रह.... अहसास एक पल (सांझा काव्य संग्रह) शब्दों के रंग (सांझा काव्य संग्रह) अनकहे जज्बात (सांझा काव्य संग्रह ) सत्यम प्रभात (सांझा काव्य संग्रह ) शब्दों के कलम (सांझा काव्य संग्रह ) मधुबन (काव्यसंग्रह) तितिक्षा (कहानी संग्रह) काव्यगंगा-1 (काव्यसंग्रह) लोकजंग, शिखर विजय व राजस्थान की जान नामक पत्रिका में समय समय पर रचनाएँ प्रकाशित होती रहती है । मेरा आने वाला स्वयं का एकल काव्य संग्रह... मेरी रुह-अहसास का पंछी प्रकाशन प्रक्रिया में है नई काव्य संग्रह- काव्यगंगा भी प्रकिया में है कहानी संग्रह भी प्रक्रिया में है संपर्क e-mail [email protected] Facebook [email protected]