चलो कुछ इस अंदाज में अपनी ये ईद मनाते हैं,
बकरे की बलि की जगह रक्तदान करके आते हैं।
बलि भी हो जाएगी और ये बकरे भी बच जाएंगे,
चलो मिलकर हम एक नई रीत इस बार चलाते हैं।
दुआ मिलेगी जब किसी की जिंदगी बचाएगा रक्त,
इस ईद पर एक फर्ज इंसानियत का भी निभाते हैं।
किसी के लबों पर आए मुस्कान हमारी वजह से,
आओ ये सोचकर बुझते हुए चिरागों को जलाते हैं।
अल्लाह भी खुश होकर रहमतों की बरसात करेगा,
करके रक्तदान ईद पर किसी की जिंदगी बचाते हैं।
अल्लाह भी कहता है, खुशियाँ बाँटो तुम हर रोज,
जो दें खुशियाँ औरों को वो ही फरिश्ते कहलाते हैं।
रक्तदान करके, अदा करें ईद की नमाज हम आज,
सुलक्षणा ने समझाया हमें, हम औरों को समझाते हैं।
— डॉ सुलक्षणा अहलावत