गीतिका/ग़ज़ल

भुलाता जा रहा है सादगी को

भुलाता जा रहा है सादगी को

ये क्या होने लगा है आदमी को

 

जिधर देखो अँधेरा ही अँधेरा

चलो हम ढूँढ लाएँ रोशनी को

 

उठाता हाथ है औरत पे जो भी

वो गाली दे रहा मर्दानगी को

 

सभी को सादगी अच्छी लगे है

नहीं चाहे कोई आवारगी को

 

फ़कीरी का अलग अपना मज़ा है

सलामी आप ही दो साहबी को

 

बुरे हालात ‘माही’ मुल्क के हैं

भटकती है जवानी नौकरी को

 

 

mahi

महेश कुमार कुलदीप

स्नातकोत्तर शिक्षक-हिन्दी केन्द्रीय विद्यालय क्रमांक-3, ओ.एन.जी.सी., सूरत (गुजरात)-394518 निवासी-- अमरसर, जिला-जयपुर, राजस्थान-303601 फोन नंबर-8511037804