गज़ल
मेरे दिल को तड़पाता बहुत है,
फिर भी याद वो आता बहुत है
है दीगर बात मैं सुनता नहीं हूँ,
मुझे वैसे वो समझाता बहुत है
उसे भी गम कोई गहरा है शायद,
बेवजह वो मुस्कुराता बहुत है
करेगा इश्क का इज़हार कैसे,
इस दुनिया से घबराता बहुत है
वक्त ले आएगा उसको ठिकाने,
जो खुद पे आज इतराता बहुत है
पत्थर हो गए इंसान सारे,
शहर में तेरे सन्नाटा बहुत है
— भरत मल्होत्रा