मैत्री भाईचारे के प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया कितनी सफल कितनी असफल
मैत्री भाईचारे के प्रचार प्रसार में सोशल मीडिया कितनी सफल कितनी असफल
पिछले दशकों और वर्तमान की स्थिति को देखें तो यह कहने में संकोच नहीं होगा कि आजकल सोशल मीडिया प्रत्येक क्षेत्र में सहयोग और विकास में अपनी महती भूमिका का निर्वहन कर रही है।इसमें मैत्री और भाईचारे के प्रचार -प्रसार में शीघ्रतम कार्य का माध्यम सोशल मीडिया से अच्छा कौन हो सकता है जब डाक व्यवस्था लचर हो लोग डाकखाने को डाक खाने वाला कहने लगे हों।साधारण पत्र हों या पत्र -पत्रिकायें पाने वालों तक न पहुंचती हों अथवा इनके शौकीन मध्य में ही डकार जाते हों।जानबूझकर सम्बन्धित तक पहुंचने न देना चाहते हो।पंजीकृत पत्र तक महीनों बाद मिलते हों।साधारण पत्रों का किसी प्रकार विश्वास नहीं कि मिलेगा या कहूं ऐसे हाल में मिलेगा कि उसको पढ़ा- समझा ही न जा सके।
सोशल मीडिया में विविध अन्तरजालों फेसबुक टिवटर व्हाटशप के आने से सम्बन्धों सूचनाओं के आदान- प्रदान में एक क्रान्ति आयी है।दूर बैठे या सालों से टूटे सम्पर्कों का महत्वपूर्ण कार्य न केवल सोशल मीडिया ने किया है अपितु आपसी विचार -विमर्श सन्देशों चित्रों और सुख -दुख के क्षणों को बांटने एक दूसरे के अनुभवों से सीखने लाभ उठाने का कार्य कर रही है।साहित्यिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और विविध कलाओं के क्षेत्र में सोशल मीडिया से लोग एक – दूसरे से तेजी से जुड़े हैं ख्याति और उपलब्धियों का तेजी से प्रचार- प्रसार हुआ है।दिनों सप्ताहों महीनों की गतिविधियां मिनटों और सेंकण्डों में सम्पन्न होने लगी हैं।घर बैठे मित्र तुरन्त ही अपने सुख दुख और उपलब्धियों बांट रहे हैं।मैत्री और भाईचारे के पल आपस में बांटे जा रहे हैं।सहयोग की भावना विकसित हो रही है।यह क्रम अपने ही मित्रों तक सीमित न होकर मित्रों के मित्र और उनके भी मित्रों तक विस्तार ले रहा है।अनेक संस्थायें इसमें और सक्रियता के लिए अपना प्रशंसनीय योगदान दे रही हैं।इसमें सबसे बड़ा लाभ यह है कि हम कहीं भी किसी भी समय इन माध्यमों का उपयोग कर सकते हैं।आकस्मिकता की स्थिति में तत्काल सहायता कर सकते हैं। अनेक अवसरों पर सोशलमीडिया की सक्रियता ने अपराधियों के हौसले पस्त किये हैं। उनसे सामान्य जनमानस की सुरक्षा की है।इसी का परिणाम है कि आज कोई बाधा अधिक समय तक सम्पर्क संदेशों के आदान- प्रदान से नहीं रोक सकती है।
अन्य साधनों माध्यमों की भांति यहां पर भी अनुशासन हीनता बढ़ रही है बहुत सारे लोग बहुत सारे ग्रुप बने हैं जिनके अपने अपने उ{ृेश्य हैं।कार्यप्रणालियां हैं जिन पर उनके संस्थापक या संचालक समय-समय पर दिशा निर्देश देते रहते हैं।सावधान करते हैं कई बार समूह से हटाने या ब्लाक करने की बात भी करते हैं पर अनुशासन हीन लोग मानते नहीं, वही करते हैं जिसके लिए मना किया जाता है ।कई बार यह भूल जाते हैं कि वह क्या लिख रहे हैं क्या समूह में डाल रहे हैं।उनके यह कृत्य न केवल विभिन्न समूहों की कार्य प्रणाली को क्षति पहुंचाते हैं, अपितु उनके उद्देश्यों की प्राप्ति में बाधा बन जाते हैं।गहन चर्चा चिन्तन और मनन के स्थान पर मात्र मनोरंजक या सतही बातें दिखने जगती हैं जिनसे किसी को लाभ नहीं हो सकता।मेरा मानना है ऐसे लोगों को सोद्श्योपरक समूहों से हट जाना चाहिए अन्यथा हटा दिया जाना चाहिए।ये भी निरु{ेश्य बने समूहों में अपने मन की भड़ास निकाल सकते हैं।मैं भी कुछ महत्वपूर्ण उद्ेश्यों को लेकर अपने द्वारा बनाये गये समूहों में ऐसे लोगों से पीड़ित हंू।कई को बाहर का रास्ता दिखा चुका हंू।समझने वालों का समझाने का प्रयास भी कर रहा हंू।पर दुःख इस बात का है कि परिणाम ढाक के तीन पात।
कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि मैत्री और भाईचारे के प्रचार- प्रसार में सोशल मीडिया अत्यन्त सफल है और समाज को जागरूक करने के साथ- साथ उसको लाभान्वित भी कर रही है।साथ ही जीवन के प्रत्येक क्षेत्र की भांति यहां पर भी वैचारिक प्रगटीकरण का अनुषासन परम आवश्यक है जिसका प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक व्यक्ति के द्वारा पालन किया जाना चाहिए।