शिक्षक_दिवस_आधुनिक_युग_में_बदलते_समीकरण
हमारे देश के भूतपूर्व राष्ट्रपति डा. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के जन्मदिन को ही उनके एक उच्च शिक्षक को श्रद्धांजलि के रूप में मनाया जाने वाला “शिक्षक दिवस” की महत्ता को किसी भी कीमत पर नकारा नही जा सकता।हमारे धार्मिक ग्रंथों में तो गुरू को भगवान से भी उच्च दर्जा दिया गया है।
गुरू गोबिंद दोऊ खड़े, काके लागूँ पाय
बलिहारी गुरू आपने,जिन गोबिंद दियो मिलाय।।
हमारे जीवन के विकास में गुरू की भूमिका सर्वोपरि है।घर से बाहर माता पिता के स्नेहिल छाँव के बाद जब बच्चा बाहर की दुनिया में कदम रखता, तो यह गुरू ही है जो उसको शैक्षणिक योग्यता प्रदान करने के साथ साथ सामाजिक मूल्यों, अच्छी आदतों के विकास में एक महत्वपूर्ण योगदान देता।हमारे ज्ञान कौशल के स्तर को बढ़ाकर हमारे अंदर की खूबियों को उजागर करने में शिक्षक का महत्वपूर्ण योगदान होता है। राष्ट्र निर्माण में निश्चित रूप से शिक्षक का स्थान सर्वोपरि है।
एेसे में शिक्षक को पूरा मान सम्मान देना हमारा परम कर्तव्य है। पर आज के समय में शिक्षक और विद्यार्थी के बीच संबंध इतने मधुर नही प्रतीत होते । आज द्रोणाचार्य के कहने पर अपना अंगूठा तक काट कर देने वाले एकलव्य कहाँ? भौतिकवादी युग में धन कमाने की लोलुप्सा में कुछ शिक्षक विद्या देने जैसे पवित्र काम को भी व्यवसाय के रूप में लेते और tutions पर जोर देते, जिसकी वजह से छात्रों को मन में सम्मान का भाव कम होता जा रहा।
दूसरी तरफ छात्रों में भी उद्दंडता बढ़ती जा रही। अब शिक्षक ने बच्चों के भविष्य को देखते हुए उसकी किसी गलती पर जरा सी डाँट क्या लगा दी, बवाल खड़ा हो जाता। बात हड़ताल तथा पुलिस थानों तक भी पहुँच जाती कभी कभार।और अब ये विद्यार्थियों और शिक्षकों के बीच कभी कभार सुनने में आ रहे अमर्यादित रिश्ते सिर शर्म से झुका देते।
वैसे ऐसे मामले कम ही हैं। आज भी शिक्षक वर्ग अपनी जिम्मेदारियों को लेकर बहुत सचेत है।और छात्र आज भी उन्हें पूरा मान सम्मान देते। “शिक्षक दिवस” पर बढ़ रहे ग्रीटिंग कार्डस , तोहफों का प्रचलन चाहे इसके आधुनिकीकरण को इंगित करता, पर चलो अंगूठा देकर न सही, इसी तरीके से छात्र अपने शिक्षकों के प्रति अपने स्नेह को अभिव्यक्त कर इस दिन का मान तो रखते।
तो आइए इस ” शिक्षक दिवस” को राष्ट्र निर्माण में सहायक गुरु जनों को समर्पित करते हुए यह उद्घोष करें
गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु:
गुरूर्देवो महेश्वर:
गुरु: साक्षात परब्रह्म
तस्मै श्री गुरवे नम:
— राज सिंह