गंदे अंकल
अब मत करो तैयार सुबह,
मम्मी हम स्कूल न जायेंगे।
रहते वहां पर गंदे अंकल,
जो मुझको बहुत सतायेगें।।
भाई के जैसा मित्र प्रद्युम्न,
जिसका खूनी खेल हुआ।
ग्रीवा काट दिया चाकू से,
बदनियती में फेल हुआ।।
कल कोई मुझको पकड़ेगा,
बांहों में कस कर जकड़ेगा।
बात न मानू जब उसकी,
मां गर्दन पर चाकू रगड़ेगा।।
मां तू सोई थी मैं जाग रही,
डर-डर कर रातें काट रही।
गंदे अंकल नजर भयानक,
लगता था जैसे ताक रही।।
मां लड़का नहीं बचा उनसे,
मैं प्यारी फूल सी गुड़िया हूं।
उनसे बचना तो मुश्किल है,
मां तेरी ही तो गुड़िया हूं।।
हैवान वहीं पर पकड़ेगा,
मुझको बांहों में जकड़ेगा।
मैं प्रतिरोध करुंगी उसका,
कामातुर भेड़िया मसलेगा।।
मां सजल नेत्र से धो पीड़ा,
फिर गले लगा बोली “वीणा”
ना डर कर जी तू कुकर्मी से,
इनसे लड़ने का उठा बीड़ा।।
तू लड़की है पर दुर्गा बन,
चण्डी स्वरूप कन्या बन।
तू शीतल है, तू प्रेममयी,
ना डरकर जी, युगदृष्टा बन।।
तू आंख मिलाकर चल उनसे,
ना कोई कमी तुझमें उनसे।
निर्भय रहना, रह सावधान,
तू शक्ती है, ना डर उनसे।।
— प्रदीप कुमार तिवारी
करौंदी कला, सुलतानपुर
7537807761