कविता : क्या होने वाला
जानते है सब कि कोई नहीं जानता
आगे क्या होने वाला है..?
फिल भी एक दूसरे से पूछते है कि
बताओ आगे क्या होने वाला है..?
गहरी रात के सन्नाटों में
मंदिरों में मस्जिदों में,
कभी भी गूँज सकती है
घंटियों के बजाय गोलियों की आवाज,
सशंकित आत्माएं,अतृप्ति इच्छाएं
ये सोचने ही कब देती कि
आगे क्या होने वाला है..?
सीमित पोशाकों में सिमटी मर्यादाएं
बेहयाई परोसते बाजार,
सिसकते रिस्तों पर वासनाओं की धूल,
झुलसी त्वचा पर पाश्चात्य का लेप,
कहाँ सोचने देता है कि
आगे क्या होने वाला है..?
एक ही धुन में गाता माली
फूल खरीदो या लो डाली,
ओह..! कैसे नोची डाली-डाली
जड़ से अचेतन सब खाली-खाली,
चित्कारती है,पुकारती है
दर्द का एहसास कराती पर
तुम्हारा गुरूर नहीं समझने देता कि
क्या होने वाला है….??
— नीरू “निराली”