गज़ल
दिल, जिगर, अबरू, पलक सबको है,
तेरे आने की खबर दूर तलक सबको है
ना देखो हमको यूँ गुरूर से महल वालो,
पाँव के नीचे ज़मीं सर पे फलक सबको है
नहीं अरमां हुए यहां किसी के भी पूरे,
थोड़ी-बहुत तो दिलों में कसक सबको है
भरोसा अब कोई किसी पे यहां कैसे करे,
आज इक-दूजे के मयार पे शक सबको है
फैसले वक्त के बदले तो नही जा सकते,
मगर वक्त से फरियाद का हक सबको है
— भरत मल्होत्रा
उत्तम ग़ज़ल !