लघुकथा

“हादसा”

ट्रेन चलने में अभी दो मिनट बाकी थे। वह नीचे उतर कर खिड़की के पास खड़ा हो गया । बीवी और उसका पाँच साल का बच्चा विंडो के पार ट्रेन में और वह प्लेटफार्म पर निराश खड़ा था। बच्चा बार-बार, पापा-पापा बोल कर रो रहा था, माँ पापा के साथ चलने का झूठा वायदा करके, उसे प्यार से मना रही थी । ट्रेन रुकी रही और करीब पाँच मिनट लेट रवाना हुई तब तक वह बुत बना खड़ा रहा ।

बच्चे को अब पूरा यकीन हो गया था कि पापा साथ नहीं आने वाले, वो अब सिसककर रोने लगा । माँ अब भी चॉकलेट और बिस्किट लेने गए हैं पापा, अभी आ जायेंगे बेटू, बहुत सा चॉकलेट लायेंगे, तुम सारा खा लेना किसी को भी मत देना, कहकर उसे सीने से चिपकाए पुचकार रही थी । दो घण्टे बीत गए ये दृश्य ज्यों का त्यों बना रहा । ट्रेन अपनी पूरी गति से भागी चली जा रही थी । मानो बच्चे को पापा से बहुत दूर लेकर जाना हो उसे ।

अब बच्चा खा पीकर सो गया था, माँ ने भी राहत की साँस ली, आँख लग गयी, वो भी सो गयी । सोते को क्या पता कब कौन सा स्टेशन आया और ट्रेन चली या रुकी । पर कुछ ऐसा हुआ जिसने सबकी नींद तोड़ दी, एक बहुत जोरों की आवाज, तेजी से झटके के साथ । सोते हुए लोग जग गये और न जाने कितने हमेशा के लिए सो गये । वह बच्चा भी सो गया था अपनी माँ की छाती से चिपककर, दोनों ऐसी नींद में सो गये थे जिससे वापस जगना असंभव था । लोगों ने इसे ट्रेन हादसा कहा जो ट्रेन के डिब्बों के पटरियों के उतर जाने से हुआ था, पर ये वास्तव में त्रासदी थी ।

ओमप्रकाश पाण्डेय सोहम

Writer/Blogger बहराइच, उत्तर प्रदेश