शीर्षक से तो आप जान ही गए होंगे, कि आज हम राजकुमार भाई को जन्मदिन मुबारक कहने वाले हैं. राजकुमार भाई, आपको जन्मदिन मुबारक हो. जन्मदिन की कोटिशः बधाइयां और शुभकामनाएं.
राजकुमार भाई के बारे में बात करने से पहले हम हम आपको एक कहानी सुना रहे हैं. 13 साल के माइकल नामक एक बालक को उसके पिता ने एक कपड़ा दिखाते हुए पूछा-
”यह कितने का है?”
”एक डॉलर का.” माइकल ने कहा. पिता ने उसे दो डॉलर में बेचकर आने को कहा. माइकल ने उस कपड़े को अच्छे से धोया और तह लगाकर रख दिया. अगले दिन उसे लेकर वह रेलवे स्टेशन गया, जहां कई घंटों की मेहनत के बाद वह कपड़ा दो डॉलर में बिका. दूसरी बार वैसा ही कपड़ा देकर पिता ने उसे 20 डॉलर बें बेच आने को कहा. उस कपड़े पर माइकल ने अपने दोस्त की मदद से मिकी माउस की पेंटिंग बनवाई और अमीर बच्चों के स्कूल पहुंच गया. एक बच्चे ने वह कपड़ा बीस डॉलर में खरीदा और उसे पांच डॉलर की टिप भी दी. तीसरी बार वैसा ही कपड़ा 200 डॉलर में बेच आने को कहा. इस बार माइकल ने दूसरा जुगाड़ लगाया. उसके शहर में मूवी की शूटिंग के लिए एक ऐक्ट्रेस आई थीं. माइकल ऐक्ट्रेस के पास पहुंचा और उसी कपड़े पर उनके ऑटोग्राफ ले लिए. ऑटोग्राफ लेने के बाद वहीं माइकल उस कपड़े की बोली लगाने लगा. बोली दो सौ डॉलर से शुरू हुई और एक व्यापारी ने वह कपड़ा 1200 डॉलर में ले लिया. रकम लेकर जब माइकल घर पहुंचा तो खुशी से पिता की आंखों में आंसू आ गए. उन्होंने बेटे से पूछा कि इतने दिनों से कपड़े बेचते हुए तुमने क्या सीखा? माइकल बोला, ‘पापा जहां चाह होती है, राह अपने आप निकल आती है.’ पिता बोले कि ‘तुम बिलकुल सही हो, मगर मेरा ध्येय तुम्हें यह समझाना भी था कि अगर हम कपड़े के निर्जीव टुकड़े की कीमत बढ़ा सकते हैं तो हम अपनी खुद की भी कीमत बढ़ा सकते हैं.’ शायद पिता की इसी सीख की बदौलत माइकल जॉर्डन इतिहास के पहले अरबपति बास्केटबॉल प्लेयर बने.
राजकुमार भाई के बारे में भी यह सब सच है, कि उनको अपनी कीमत बढ़ाना आता है, इसके लिए उनके पास जुगत लगाने का हुनर भी है और मेहनत करने का माद्दा भी. कैसे? वह तो हम आपको बताएंगे ही, फिलहाल कुछ और बातें.
राजकुमार भाई के नाम व काम से तो आप सब लोग भलीभांति वाकिफ़ हैं. उनसे हमारी मुलाकात तब हुई थी, जब उन्होंने हमारे ब्लॉग पर सबसे पहली प्रतिक्रिया लिखी थी. प्रतिक्रिया लिखनी हो या ब्लॉग, उनकी लेखनी सशक्त होती है, सटीक और सार्थक भी. उनकी प्रतिक्रियाओं की कुछ ताज़ातरीन बानगियां हमारे ब्लॉग्स से देखिए-
सोशल मीडिया की सोशलता
”आज आपने संपर्क के सबसे प्रचलित व सशक्त माध्यमों की अपने ही तरीके से चर्चा कर दी है. लेख बड़ा सुंदर लगा. यह सरकार ही सोशल मीडिया की सरकार है. प्रभुजी ने एक ट्वीट पर रेल यात्रियों की शिकायतें दूर करके वाहवाही बटोरी, वहीं इस मामले में सुषमा जी भी काफी सक्रिय दिखीं. मोदीजी तो ट्वीट और सेल्फी के लिए कभी कभी विरोधियों के निशाने पर भी रहते हैं. सभी अच्छी चीजों की तरह इसके भी कुछ नकारात्मक पहलू हैं, जो दुखद है. एक मंत्री का फेसबुक का उपयोग करना और लोगों के मदद का प्रयास सराहनीय है.”
सफलता और रेकॉर्ड की बरसात
”बेहद शानदार ब्लॉग जिसमें आपने अपने ही अंदाज में सभी रिकार्ड्स का रिकॉर्ड रखा है. अंतरिक्ष मे सबसे ज्यादा दिन बिताने का रिकॉर्ड हो या क्रिकेट से संबंधित रिकॉर्ड सभी रिकॉर्ड नायाब हैं. धोनी अपनी इन्हीं खूबियों की वजह से सर्वप्रिय हैं. उन्होंने व्यक्तिगत रिकॉर्ड को कभी महत्व नहीं दिया, यह हमने तीसरे मैच में भी देखा था जब 49 के स्कोर पर होने के बाद भी उन्होंने स्ट्राइक मनीष पांडे को दे दिया था. 100 स्टाम्प लेने का विश्व रिकॉर्ड बनाने के साथ ही धोनी ने सर्वाधिक बार नाबाद रहने का अपना रिकॉर्ड और बेहतर कर लिया है. टोडरमल की कहानी भी प्रासंगिक लगी.”
रिश्तों की गर्माहट
”रिश्तों में गर्माहट रखना हमारी संस्कृति और सभ्यता का एक प्रमुख स्वभाव है. हमारी पीढ़ी तक शायद यह रिश्तों की गर्माहट बरकरार रखने की छटपटाहट देखी गयी है, पर आज ऐसा नहीं प्रतीत होता है. आभासी दुनिया के मकड़जाल में युवाओं के रिश्ते भी आभासी हो चले हैं. अब तो यही सही लगता है आज के लोगों की सोच के बारे में ‘ दिल मिले न मिले हाथ मिलाते रहिये ….. रिश्तों की गर्माहट बनाये रखने के लिए हमें कई मौके मिलते हैं और हमें उनका सदुपयोग करते हुए रिश्तों की गर्माहट बनाये रखनी चाहिए. हमें जो पसंद है वही दूसरों को देने की कोशिश भी रिश्तों की गर्माहट जारी रख सकती है. अब रिश्तों की गर्माहट का ही सबसे सुंदर उदाहरण आपका ब्लॉग है, जहां पाठक दिल खोलकर अपने रिश्तों की गर्माहट का इजहार अपनी प्रतिक्रियाओं द्वारा करते हैं.”
धोनी की ‘ट्रिपल सेंचुरी’
”क्रिकेट में एक मुहावरा बन गया था ‘ अनहोनी को होनी कर दे ,वही है अपना धोनी ‘. अपने फैसलों से खेलजगत को चौंकाने वाले तथा फिर अपने ऊटपटांग फैसले के बूते ही सफलता हासिल करके खुद को सही साबित करने का माद्दा था, धोनी में जिसकी आज दुनिया कायल हो चुकी है. 2007 में 20 – 20 वर्ल्ड कप के अंतिम ओवर में गेंद बिल्कुल नए गेंदबाज जोगिंदर को देने का उनका निर्णय कौन भुला सकता है, लेकिन यह भी एक गौरवशाली इतिहास बन गया कि धोनी के उसी फैसले ने भारत को पहला वर्ल्ड कप टी 20 का जितवा दिया था. एक धुरंधर खिलाड़ी के अपने ताज को बरकरार रखते हुए धोनी सीमित ओवरों के इस खेल में अपना 300 वां मैच खेल कर भारत की तरफ से चौथे सबसे अधिक मैच खेलने वाले खिलाड़ी बन गए. बधाई ! सबसे अधिक बार नाबाद रहने का रिकॉर्ड तो बना ही चुके हैं, मात्र एक रन से अर्धशतकों का शतक लगाने से चूक गए. विकेटों के पीछे शिकार करने का भी रिकॉर्ड उनके ही नाम होनेवाला है.”
आपने देखा होगा, कि उनकी हर प्रतिक्रिया लिखने में लगन के दर्शन होते हैं. और एक-एक शब्द चुना हुआ होता है. चुने हुए शब्दों की बात चल ही निकली है, तो उपन्यास ‘इंसानियत – एक धर्म’ की बात कर लेते हैं. सबसे पहले हम आपको उपन्यास ‘इंसानियत – एक धर्म’ की एक रोचक बात बता देते हैं. यह उपन्यास एक लघुकथा के रूप में शुरु हुआ था, लघुकथा ने बड़ी कहानी का रूप ले लिया, अंततः बड़ी कहानी ने उपन्यास का रूप ले लिया. अब तक इस उपन्यास की 32 कड़ियां प्रकाशित हो चुकी हैं. एक-एक कड़ी नायाब बन पड़ी है. जैसा कि नाम से ही विदित होता है, ‘इंसानियत – एक धर्म’ में इंसानियत को ही एक धर्म के रूप में स्थापित किया गया है.
प्रतिक्रिया की बात चल निकली है, तो हम यहां बताते चलें, कि प्रतिक्रिया भी किसी रचना या ब्लॉग का मुख्य अंग होती है. प्रतिक्रिया रचना का आकलन करती है, जिससे लेखक/ब्लॉगर का मार्गदर्शन होता है. अनेक लोग प्रतिक्रियाओं से कुछ नया सीखने के लिए भी बार-बार ब्लॉग पर आते हैं. राजकुमार भाई अनेक ब्लॉगर्स के ब्लॉग्स पर प्रतिक्रिया लिखते हैं और अपने ब्लॉग्स में भी प्रतिक्रिया देखते ही उत्तर भी देते हैं. यह भी उनकी एक विशेषता है.
अब हम आपको उपन्यास ‘इंसानियत – एक धर्म’ की कुछ विशेषताओं के बारे में बताते हैं. यहां अपनी कीमत खुद बढ़ाने की बात करने का समय आ गया है. राजकुमार भाई जो कुछ भी लिखते हैं, उसके बारे में पहले पूरी जानकारी एकत्रित कर लेते हैं. उनके हर पात्र की भाषा उसकी आयु, वर्ग, मानसिकता और बुद्धि के तर्क पर खरी उतरती है. पात्र हिंदू है तो खड़ी बोली बोलता नजर आता है. देहाती पात्र देहाती भाषा, शहरी पात्र शहरी भाषा ही बोलता है. इसी तरह पात्र मुस्लिम है तो वह उर्दू भाषा बोलता हुआ नजर आता है. शब्दों के कीर्तिमानों के शीर्ष पर की बात की जाए, तो राजकुमार भाई का नाम शीर्ष पर आता है. आप हिंदी के ब्लॉग में हिंदी की जिस शब्दावली और उर्दू प्रधान ब्लॉग में उर्दू की जिस शब्दावली का प्रयोग करते हैं, वह कमाल की होती है. भाषा बहुआयामी होने के साथ-साथ उनकी शैली भी बहुआयामी है. वे किसी भी रचना को इतनी रोचकता से लिखते हैं, कि एकरसता नहीं आने देते और पाठक सांस रोककर उनकी रचना पूरी पढ़कर ही दम लेता है. नीचे की दो प्रतिक्रियाओं से आप बाकी का अंदाज़ा लगा लेंगे-
31वीं कड़ी-
”प्रिय ब्लॉगर राजकुमार भाई जी, सबसे पहले तो इंसानियत पर इतना सुंदर उपन्यास लिखने के लिए बधाई व अभिनंदन स्वीकारें. असलम का किरदार तो गज़ब का है ही, रहमान चाचा की बातें भी उसकी इंसानियत को उभारती हैं. क्या खूब प्रश्न उठाया है! इंसान धर्म के लिए बना है या धर्म इंसान के लिए? यह प्रश्न केवल असलम का नहीं है, हर मजहब के लोगों के मन की असलियत है. पात्र के अनुरूप अत्यंत सहज व मनोहारी उर्दू भाषा ने सटीकता के साथ-साथ रोचकता में वृद्धि करने का काम भी किया है.”
32 वीं कड़ी-
”प्रिय राजकुमार भाई जी, इस कड़ी को पढ़कर तो प्रेमचंद जी की याद आ गई. आप दोनों में फर्क यह है, प्रेमचंद पहले शानदार उर्दू में लिखते थे, फिर उतनी ही शानदार-जानदार हिंदी में लिखते थे, आप हिंदी में लिखते-लिखते ख़ालिस उर्दू पर आ गए हैं. दीन, ईमान, जिहाद, जन्नत, इस्लाम, हदीसें, रवायतें और अब सुप्रीम कोर्ट के एक ऐतिहासिक फैसले का सटीक वर्णन मनोहारी लगा.लगा. रजिया का बेबाक कथन- ‘इंसानियत खोने की बुनियाद पर खड़े किसी भी मजहब में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है’ भी नायाब बन पड़ा है.”
वे बचपन से ही प्रतिभाशाली रहे हैं. बचपन की बातें साझा करते हुए वे एक रचना में लिखते हैं-
”यूं तो मैं कक्षा दूसरी भी उसी विद्यालय से उत्तीर्ण हुआ था, लेकिन दूसरी कक्षा में ज्यादा नहीं पढ़ सका था. उसकी वजह थी. शैक्षणिक सत्र 1971 -72 के लिए जनवरी 1972 में मेरा दाखिला दूसरी कक्षा में हुआ था. तब विद्यालयों में दाखिले के लिए किसी प्रमाणपत्र की जरूरत नहीं होती थी. घर पर ही पिताजी के द्वारा बताने की वजह से किताबें भलीभांति पढ़ लेता था. दाखिले के वक्त बड़े गुरूजी ने बालभारती से एक कठिन शब्दों वाला पाठ जिसमें स्वतंत्रता दिवस ‘ गणवेश जैसे शब्द थे पढ़ने के लिए दिया, जिसे मैंने फर्राटे से पढ़ लिया और विद्यालय में दाखिला मिल गया” यही फर्राटेदार भाषा व काम अभी भी जारी है. एक साल के अंदर ‘जय विजय’ पत्रिका में उनकी लगभग तीन शतक रचनाएं आ चुकी हैं और अपना ब्लॉग में लगभग एक शतक.
ये रचनाएं केवल संख्या की अधिकता की दृष्टि से ही महत्त्वपूर्ण नहीं हैं, यहां भी उनकी प्रतिभा बहुआयामी है. गद्य हो या पद्य, उन्होंने हर विधा में नायाब रचनाएं लिखी हैं. उनकी उपन्यास विधा से तो आप परिचित हो ही चुके हैं. कहानी और लघुकथा लेखन में भी उनको महारत हासिल है. उनका यात्रा वृतांत भी अनूठा बन पड़ा है. पद्य में कविता, गीत, गज़ल, भजन सबसे अपनी कलम का जादू दिखाया है. सच है-
प्रतिभा अपनी राह खुद ढूंढ लेती है,
देश-दुनिया के विकास की राह सजा देती है.
किसी भी रचना में कथोपकथन का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है. उनके कथोपकथन एकदम सरल, सधे हुए, सटीक और सार्थक होते हैं. कथन न ही इतने छोटे होते हैं, कि अपनी बात न कह पाएं, न ही इतने बड़े कि भाषण के समान लगने लगें. नावक के तीरों के समान पैने कथन रचना में अनुपम निखार ला देते हैं.
प्रकृत्ति चित्रण भी रचना का प्रमुख आकर्षण होता है. जब-जैसे उनको अवसर मिलता है, वे प्रकृत्ति का इतना सुंदर चित्रण कर देते हैं, कि आंखों के सामने दृश्य चित्रित हो जाता है. मजे की बात यह है, यह चित्रण सायास नहीं अनायस और सहज होने के कारण रचना का सौंदर्य बढ़ाता है. इसी तरह किसी स्थान का भी चित्रण ऐसे करते हैं, मानो हम वहीं खड़े होकर दृश्य देख रहे हों. उनके उपन्यास तो इस कसौटी पर इतने खरे उतरते हैं, कि उन पर आसानी से फिल्मांकन भी किया जा सकता है, बस किसी सहृदय निर्देशक की नजर में आने की देर है.
अंत में एक बार पुनः राजकुमार भाई को जन्मदिवस की कोटिशः बधाइयां व शुभकामनाएं देते हुए कहना चाहेंगे-
”जन्मदिवस की बधाई हो,
खुशियों की शहनाई हो,
उठे नज़र जिस ओर, जिधर भी,
मस्त बहारें छाई हों.”
हम सभी पाठक, लेखक, कामेंटेटर तथा शुभचिंतक आपके व आपके परिजनों की ख़ुशी में सहभागी हैं. हम सभी की तरफ से आपको जन्मदिवस की कोटिशः शुभकामनाएं.
आदरणीय लीला बहन जी,
आपने प्रतिक्रियाओं के बीच से हीरा जवाहर खोज निकाला है. कलम के धनी प्रेमचंद
जी जैसी शैली वाले छोटी सी छोटी बात को पूरे मनोवैज्ञानिक ढंग से समझ बूझ कर
लिखने की कला में माहिर, वातावरण , विभिन्न पात्रों की भाषा, जीवन शैली पर
पैनी नजर रखने वाले, फिल्मों के संवाद लेखकों को भी मात देते हैं. में तो इनका
फैन हूँ. मेरी तरफ से इन्हें जन्मदिन की बधाई. आपने एक बहुत प्यारा ब्लॉग लिखकर
इनकी लेखनी के विभिन्न पहलुओं पर अच्छा प्रकाश डाला है. सजती रहे खुशबूओं की
महफिल, हर खुशी सुहानी रहे, आप ज़िंदगी में इतने खुश रहें, की हर खुशी आपकी
दीवानी रहे.
लीला बहन , वाकई राजकुमार भाई तो एक दम छुपे हेव रुस्तम निकले . हम भी उन को जनम दिन की वधाई देते हैं .
प्रिय गुरमैल भाई जी, आपने बिलकुल दुरुस्त फरमाया है. रोशनी में आने से पहले सब छुपे रुस्तम ही होते हैं, बाद में खुली किताब हो जाते हैं. अत्यंत सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार.
आदरणीय बहनजी ! अपने शब्दों के खजाने से चुने हुए सुंदर शब्दों से युक्त निर्मित इस अनमोल ,अनुपम व नायाब ब्लॉग का उपहार मुझे देकर आपने मेरा जन्मदिवस अविस्मरणीय बना दिया है । एक छोटी सी प्रतिक्रिया लिखने की भी हिम्मत मैं आपके के ब्लॉग पढ़ने के बाद ही जुटा सका था और फिर आपके प्रोत्साहन के जादू ने मुझे यहां तक पहुंचा दिया सो मेरा अपना तो कुछ भी नहीं है । मेरे लेखन का पूरा श्रेय आपको ही जाता है । आज जन्मदिवस पर यह नायाब अमूल्य अविस्मरणीय उपहार पाकर मैं अभिभूत हूँ व कृतज्ञ भी । अति सुंदर ब्लॉग द्वारा जन्मदिवस की बधाइयों व शुभकामनाओं के लिए आपका हृदय से धन्यवाद ।N
प्रिय राजकुमार भाई जी, छोटी-सी नदिया कब महासागर बन जाती है पता नहीं चलता, इसी तरह छोटी-सी प्रतिक्रिया कब महा उपलब्धि में तब्दील हो जाती है पता नहीं चलता. इसी तरह तरक्की करते रहिए. इसी शुभकामना के साथ अत्यंत सटीक व सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका हार्दिक आभार.