“मुक्तक”
शीर्षक— तम, तिमिर, अंधकार, अंधियारा, तमस आदि समानांतर शब्द)
अंधेरों ने कब कहा, दे दो मुझको दाद।
बैठो मेरे संग तुम, होकर के बरबाद।
इसी लिए तो दिन बना, और बनी मैं रात-
लगी आँख पिय आप की, हुई निशा आबाद।।-1
तिमिर तमस तम जब बढ़ा, हुआ धुप्प अँधकार।
अँधियारों को तजे, उदय किरण आकार।
इक दूजे के साथ में, अपने मन की राग-
मंशा दोनों का मिलन, प्रकृति प्रेम उपहार।।-2
महातम मिश्र, गौतम गोरखपुरी