अलख
आओ मिलकर अलख जगाएँ
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ ।
न रहे कोई अनपढ़ निरक्षर
सबको अक्षर ज्ञान कराएँ ,
प्रेम दया का पाठ पढ़ाएँ ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ,
आओ मिलकर अलख जगाएँ।
लड़का लड़की एक समान
सबको यह अहसास दिलाएँ,
दोनों को हम सभ्य बनाएँ ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ,
आओ मिलकर अलख जगाएँ ।
हिन्दी हमारी मातृभाषा
क्यों न हम इसको अपनाएँ ,
जन-जन में यह जोश जगाएँ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ,
आओ मिलकर अलख जगाएँ ।
हिन्दू मुस्लिम सिख ईसाई
आपस में हैं भाई-भाई ,
इस नारे को यथार्थ बनाएँ ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ
आओ मिलकर अलख जगाएँ।
जीवन दाता वृक्ष हमारे
इनकी की रक्षा फर्ज हमारा,
वृक्षों की फिर फौज सजाएँ ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ
आओ मिलकर अलख जगाएँ।
नदिया मीठा जल देती है
निस्वार्थ भाव से यह बहती है ,
इसको हम सब स्वच्छ बनाएँ ।
धरती को फिर स्वर्ग बनाएँ
आओ मिलकर अलख जगाएँ ।
— निशा नंदिनी गुप्ता
तिनसुकिया, असम