डोर समय की थामना
आज है तम तू सूरज बनके, करले उसका सामना,
वीरता से आगे बढ़कर, डोर समय की थामना-
समय कभी रुकता ही नहीं है, समय कभी भी झुके नहीं,
कैसा वीर सपूत है वह जो, डर रोड़ों से रुके कहीं,
देश-समय की टेर है ये, तू छोड़ न इसको भागना,
वीरता से आगे बढ़कर, डोर समय की थामना-
शोर से पूरित गली-गली, छाया आतंक चहुं ओर है,
दुःखी लगें जो संत-भाव के, सुखी जो मन से चोर हैं,
शेर बन तू दिलेर बन तू, हार कभी मत मानना,
वीरता से आगे बढ़कर, डोर समय की थामना-
शीत से तू डरा न अब तक, उष्णता को भी है वरा,
आंधियों को, बारिशों को, चाहे तो तू सके डरा,
आज अपने देश के उत्थान की कर कामना,
वीरता से आगे बढ़कर, डोर समय की थामना
— लीला तिवानी
लगभग तीस साल पहले हमने ”बाल काव्य सौरभ” नामक पुस्तक लिखी थी, जिसमें 81 गीत हैं. ये गीत उन दिनों भी हमारे छात्र-छात्राओं में बहुत लोकप्रिय थे. समसामयिक होने के साथ ही, बहुत से गीत पुरस्कृत भी हुए. उन्हीं में से यह गीत हम जब आपके लिए लिखने लगे, तो हमें लगा कि यह तो मेक इन इंडिया का गीत है. लीजिए आप भी रसास्वादन कीजिए.
वीररस से भरपूर इस गीत के लिए बधाई लीला जी
और ये न केवल बच्चों में अपितु अब बड़ों के बीच भी लोकप्रिय होने वाला है