बेटी
सुधि और विवेक आज बहुत खुश थे । होते भी क्यों ना, सुबह से ही बधाई देने वालों का तांता जो लगा था । उनकी छोटी बेटी प्रशासनिक अधिकारी चुनी गयी थी । उनकी बड़ी बेटी चार्टर्ड अकाउंटैंट थी और एक बड़ी मल्टिनेशनल कम्पनी में सी०ई०ओ० पोज़िशन पर कार्यरत थी ।
बधाई देने वालों में किसी करीबी को देख कर सुधि 22 वर्ष पहले की दुनिया में पहुँच गयी जब वह दूसरे बच्चे को जन्म देने वाली थी । दूसरी बेटी होने पर भी उन्होने खूब खुशियाँ मनाईं । लोगों की नीच सोच का उन्हें तब पता चला जब उन्होंने किसी अपने को ये कहते सुना – “यार, शुक्र है अपनी किस्मत इतनी खराब नहीं है। अपने तो बेटा है।”
आज वही बेटे वाले, गर्वित शुभि और विवेक की किस्मत और उनकी बेटियों की मेहनत पर रश्क़ करते हुए, उनका गुणगान रहे थे।
अंजु गुप्ता