सामाजिक

सुख और दुख

विपदाएं सबके जीवन में आती हैं। सुख और दुख एक निरंतर चलती रहने वाली प्रक्रिया है जो जीवन के सुचारू रूप से निर्वहन के लिए आवश्यक है। कोई भी आपदा मनुष्य की सहनशक्ति से बड़ी नहीं होती। जिन मनुष्यों का आत्मबल कमजोर होता है वो स्वयं को उनका सामना करने में असमर्थ पाते हैं। अगर आप में आत्मविश्वास है तो विपदा आपके लिए शिक्षक का कार्य करती है। मनुष्य कभी भी सुख के समय में इतना नहीं सीख पाता जितना दुख के समय में सीखता है। कुछ व्यक्ति मार्ग की कठिनाइयां देखकर हिम्मत हार जाते हैं और अपने भाग्य पर दोषारोपण करते हुए बैठ जाते हैं। वहीं अन्य व्यक्ति लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करते हैं और मुश्किलों का साहसपूर्वक सामना करते हुए अंततः मंजिल तक पहुंच जाते हैं। ये आप पर निर्भर करता है कि रास्ते के पत्थरों को दीवार समझते हैं या सीढ़ी। अपना अभिगम सकारात्मक रखिए तो सफलता आपके कदमों में होगी।

मंगलमय दिवस की शुभकामनाओं सहित आपका मित्र :- भरत मल्होत्रा।

*भरत मल्होत्रा

जन्म 17 अगस्त 1970 शिक्षा स्नातक, पेशे से व्यावसायी, मूल रूप से अमृतसर, पंजाब निवासी और वर्तमान में माया नगरी मुम्बई में निवास, कृति- ‘पहले ही चर्चे हैं जमाने में’ (पहला स्वतंत्र संग्रह), विविध- देश व विदेश (कनाडा) के प्रतिष्ठित समाचार पत्र, पत्रिकाओं व कुछ साझा संग्रहों में रचनायें प्रकाशित, मुख्यतः गजल लेखन में रुचि के साथ सोशल मीडिया पर भी सक्रिय, सम्पर्क- डी-702, वृन्दावन बिल्डिंग, पवार पब्लिक स्कूल के पास, पिंसुर जिमखाना, कांदिवली (वेस्ट) मुम्बई-400067 मो. 9820145107 ईमेल- [email protected]