मंत्री जी का बयान
सुबह के सात बज चुके थे पर मंत्रीजी अभी भी खर्राटे मार रहे थे | ऐसा लग रहा था कि रात वाली विदेशी ब्रांडेड सुरासुंदरी ने उन्हें अब तक अपने चंगुल से मुक्त नहीं किया था |
तभी मंत्री जी का सहायक बडबडाता हुआ आ धमका – ‘ सरर… सर्र… सरजी ! आप अभी तक सो रहे हैं, टीवी खोलकर देखिये… | ‘
मंत्री जी – ‘ क्या हुआ ? ‘
सहायक – ‘ आपने कल बाबा मौजमस्ती राम को ” धर्म रत्न पुरस्कार ” प्रदान किया था, वो सी. वी. आई. द्वारा खून और बलात्कार के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया है | टीवी पर आप की और बाबा जी की कहानी साथ – साथ चल रही है | अब क्या होगा… सरजी ? ‘
मंत्री जी – ‘ अरे कुछ नहीं होगा… खामखां डरते हो और डराते हो | पत्रकार पूछेगें तो कह देंगे हमें तो पहले से ही शक था, इसलिए हम खुद पुरस्कार देने के बहाने बाबा की असलियत जानने गये थे | हमारे निर्देशानुसार ही बाबा गिरफ्तार हुआ है, हम उसे कडी से कडी सजा दिलवाकर ही मानेंगे… वो भी सजा ऐसी – जिसे कहते हैं फांसी |’
इतना सुनते ही बेचारा सहायक अपना सिर पकड़ कर वहीं फर्श पर बैठ गया | मंत्री जी लम्बी सांस खीचते हुए बोले – ‘ वैसे बाबा था अच्छा, उसने हमारी सेवा में देशी – विदेशी, लगभग हर धर्म की सुन्दरियॉ उपलब्ध कराईं थी | ‘
सहायक – ‘ सरजी ! सरजी ! क्यों न जेलरबाबू से कहकर जेल में बाबा को घर जैसी सुविधायें प्रदान की जायें, आखिर बाबा का बहुत अहसान है आप पर ‘…
मंत्रीजी – ‘ चलो देखते हैं…. फिलहाल मीडिया को बुलाओ बयान जो देना है… | ‘
— मुकेश कुमार ऋषि वर्मा