गज़ल
ना दुनिया यूँ हसीं होती अगर बेटी नहीं होती,
कमी कुछ रह गई होती अगर बेटी नहीं होती
चूमता मैं किसका माथा रात को उठकर,
ना आँखों में नमी होती अगर बेटी नहीं होती
अपने से जुदा करना अपने दिल के टुकड़े को,
रीत ये ना चली होती अगर बेटी नहीं होती
डोली को विदा करते हुए बाबुल की आँखों से,
गंगा ना बही होती अगर बेटी नहीं होती
निकाला घर से जब बेटों ने माँ रो-रो के तब बोली,
मैं सड़कों पर पड़ी होती अगर बेटी नहीं होती
— भरत मल्होत्रा
Bhut sundar