लघुकथा

जिंदगी खवाब है.

आरजू संयुक्त परिवार में पलकर बड़ी हुई ,उसे सबका खूब प्रेम मिला था| आज विवाह के बाद भी हंसते-खेलते परिवार की तमन्ना लेकर आई थी| आरजू स्वाभाव की भली, हंसमुख और सबसे मिलनसार रहती | सब उससे खुश और उसकी तारीफ करते न थकते | मगर किस्मत की मार वो माँ नही बन पाई | सास अक्सर घर में बच्चे की किलकारियाँ सुनने की बात करती, बेटा हंसकर कहता, “अभी तो हम भी बच्चे हैं, हो जाएंगे बच्चे भी, थोड़े हम सियाने तो हो जाएँ|” वक्त गुजरता चार साल हो गये| आरजू की सास की तबियत भी खराब रहने लगी| बेटा अमन भी माँ को देख उदास हो जाता| दोनों दम्पति ने डाक्टर को दिखा इलाज़ करवाया पर कोई फायदा नहीं लगा | आखिर किराये की कोख ले बच्चा करने की बात का फैसला कर लिया | एक बस्ती में गरीब युवा औरत की कोख किराये पर ले पचास हजार में सौदा कर लिया | कुछ एडबांस बढिया खाना, रहना और डाक्टरी चिकित्सा का पूरा ख्याल के लिये दिए |
जब सरोगेट को डॉक्टर को दिखाने गये तो मौसी ने सब देख लिया, “तुम इसकी कोख ले बच्चा कर रहे हो, जीजी को पता है क्या?” बहू आरजू ने हाथ जोड़ कहा, “हम ये सब माँ की खुशी के लिये कर रहे हैं, मेरे अंदर कमज़ोरी हैं, बच्चा ठहरता नहीं| मौसी, हमें माफ कर दो, ये सब मेरी ही जिद्द पर हम फैसला ले चुके हैं|” बच्चा होने तक डरे अमन और आरजू झूठा नाटक कर घर के अधूरे खवाब को पाने में जूझते रहे|इस खाब्ब के अहसास को मासी के स्नेह से बाटते रहते|

— रेखा मोहन १२/९/२०१७

*रेखा मोहन

रेखा मोहन एक सर्वगुण सम्पन्न लेखिका हैं | रेखा मोहन का जन्म तारीख ७ अक्टूबर को पिता श्री सोम प्रकाश और माता श्रीमती कृष्णा चोपड़ा के घर हुआ| रेखा मोहन की शैक्षिक योग्यताओं में एम.ऐ. हिन्दी, एम.ऐ. पंजाबी, इंग्लिश इलीकटीव, बी.एड., डिप्लोमा उर्दू और ओप्शन संस्कृत सम्मिलित हैं| उनके पति श्री योगीन्द्र मोहन लेखन–कला में पूर्ण सहयोग देते हैं| उनको पटियाला गौरव, बेस्ट टीचर, सामाजिक क्षेत्र में बेस्ट सर्विस अवार्ड से सम्मानित किया जा चूका है| रेखा मोहन की लिखी रचनाएँ बहुत से समाचार-पत्रों और मैगज़ीनों में प्रकाशित होती रहती हैं| Address: E-201, Type III Behind Harpal Tiwana Auditorium Model Town, PATIALA ईमेल [email protected]