कविता

बचपन….

यादें कहाँ थमने का नाम लेती है
समुंद्री लहरो की भाँति
उफनती ही रहती है
तभी तो वर्षो पीछे छूटकर
रूठ गया बचपन

पर आज भी वो नटखट
शरारत भरी यादें
याद आते ही दिल को
बच्चा कर जाता है

वो अल्हड़ मतवाले दिन
जब छम-छम पायल पहन
नाचते थे घर आँगन
वो सखी-सहेलियों के झुँड
किस्से और पहेलियों के दिन

वो हमउम्र मनचले लड़को की टोली
जो जोर-जोर से आवाज लगा
चिठाते थे ओ दो चोटी वाली
जीजा जी की शाली

फिर लड़कियों का गुस्सा
चढ़ता था सातवा आसमान
और गुस्से में
थूककर भाग आते थे
उनके पैरो पे हम

क्या अजब,गज़ब अल्हड़पन के दिन थे
बिना सोंचे समझे कुछ भी कर जाते
और तनिक भी मलाल नहीं होता था दिल में

पर आज !
मन देता है दस्तक बार-बार
और करता है आगाह
हो रही है कुछ गलतियाँ
जिसे नहीं किया जा सकता नज़रअंदाज़
क्योंकि युवावस्था में है हम आज

ओह काश!
हम बड़े ही न होते और
बचपन में ही पूरी जिंदगी बीत जाते।

*बबली सिन्हा

गाज़ियाबाद (यूपी) मोबाइल- 9013965625, 9868103295 ईमेल- [email protected]

One thought on “बचपन….

  • राजकुमार कांदु

    बहुत सुंदर अहसास होता है बचपन का । आपने बखूबी अहसास कराया है अपनी रचना द्वारा । समय बीत गया है अब स्मृतियां ही शेष बचती हैं उन सुहाने दिनों की । धन्यवाद ।

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