देशद्रोहियो की जमात
वैसे तो हमारे तत्कालीन कर्णधारों ने अपने ही देश का दो हिस्सा काटकर जिन्ना और उन जैसे मुसलमानों को खुश करने के लिए पकिस्तान के रूप में उन्हें सौंप दिया लेकिन पकिस्तान इसे कभी एहसान नहीं माना उलटे इसे अपनी बहादुरी और भारत की कायरता समझा और हमेशा ऐसे कार्यो में लिप्त रहा जिससे अधिक से अधिक भारत का नुक्सान हो. चीन की तरह साम्राज्यवादी बनना भले ठीक नहीं था लेकिन ऐसा कुछ जरुर करते रहना चाहिए था जिससे पकिस्तान अपने औकात में रहता, लेकिन यहाँ तो सब कुछ उलटा हुआ, पकिस्तान ही हमें यदा कदा अर्दब में लेता रहा. ताज्जुब होता है की बंटवारे के समय लाखो हिन्दू मारे गए, लाखो अबलाओ की अस्मत लुटी गई लेकिन विश्व मानव बनने के चक्कर में हमारे तत्कालीन नेता उससे सबक न लेते हुए ऐसा बंटवारा कर दिए जिसका दंश देश आज भी भोग रहा है. बर्बर मुगलों के कृत्य से पूरा इतिहास भरा पडा है हमारे नेता उससे भी सबक नहीं लिए. यह भी चिंतन नहीं किये की बहुसंख्यक हिन्दू कभी भी मुसलमानों को देश से बाहर खदेड़ने की पहल नहीं किये, जो कुछ भी हुआ मुसलमानों के तरफ से हुआ फिर भी नेहरु, गाँधी का मुस्लिम प्रेम समझ से परे है. समझ में नहीं आता की हजारो साल तक मुगलों का जुल्म सहकर भी हिन्दुओ के दिमाग में कभी मुसलमानों को देश से बाहर भेजने की बात नहीं आई फिर पकिस्तान बनाने की जरुरत यकायक क्यों आन पड़ी. वह कौन सी भावना थी जिसके तहत जिन्ना और उन जैसे मुस्लिमो को पकिस्तान बनाने की आवश्यकता महसूस हुई. माना की परिस्थितिबस या किसी के सत्ता लोभ बस यह सबकुछ हो गया तो फिर वह कौन सी प्रेम की डोरी बची थी जिसके कारण उन्ही प्रबित्ति के लोगो को भारत में रोक लिया गया. वैसे तो यह बड़े कड़े शब्द है लेकिन थोड़ा सा भी सोचने पर इसका अर्थ स्पष्ट हो जाएगा. दुनिया में तमाम धर्म है जिसमे सबसे अधिक इसाई है, हिन्दू है, बौद्ध है, यहूदी है, सिक्ख है. इनमे कही कोई विवाद नहीं है, सारे विवाद इस्लाम के साथ ही क्यों है.
अब ज़रा बंटवारे के बाद के राजनैतिक माहौल पर चिंतन कीजिये. देश बंट गया लोग बंट गए लेकिन पकिस्तान में कभी हिन्दुस्तान जिंदाबाद का नारा नहीं लगा जबकि भारत में आज भी पकिस्तान जिंदाबाद के नारे लग रहे है. संदेह पैदा होता है की ए पकिस्तान जिंदाबाद का नारा लगाने वाले आखिर किस षड्यंत्र के तहत यहाँ रुके हुए है, जिसको यहाँ डर लगता है, दम घुटता है फिर भी यही रुके रहने का उनका मकसद क्या है. आज इनकी जमात बहुत लम्बी हो गई है और अपने जमात में अब ए सिर्फ अकेले नहीं है, इनके साथ मिडिया, न्यस्त प्रबुद्ध बर्ग, सत्ता लोभी राजनैतिक दल भी शामिल हो चुके है. हिन्दुओ में भी एक ऐसा बर्ग है जो राष्ट्र की कीमत पर अपना स्वार्थ साधता है. विश्वविद्यालयो में भी इनकी गहरी पैठ हो चुकी है जो असहिष्णुता और अभिब्यक्ति के आजादी के हथियार से राष्ट्रवाद को निर्मूल करने का प्रयास कर रहे है. रोहंगियो को लेकर इस समय देश में जो छत पटाहट है उससे देशद्रोहियों के तादाद का पता लगाना बड़ा आसान है. फिर भी देश द्रोहियों के पहचान पर अगर बहस हो रही है तो यह सरासर बेईमानी है. अब मोदी इस तिलस्म को कितना तोड़ पाएंगे, भविष्य के गर्त में है. यद्यपि इन देशद्रोहियों की संख्या थोड़ी है लेकिन ए बहुत मनबढ़ किस्म के लोग है, इसलिए इन्हें ठीक करने की जिम्मेदारी जनता पर भी है. तमाम राष्ट्रवादियो की बलि देनेवाले कांग्रेस के चंगुल आज के प्रखर राष्ट्रवादी जो संजोग से प्र म भी है को बचाना होगा बरना —
आदरणीय पांडेय जी ! सुंदर लेख के लिए धन्यवाद । देश विभाजन का जिन्ना का मंसूबा बिल्कुल स्वार्थ से ही प्रेरित था इसमें कोई दो राय नहीं ।
जिन्ना तो एक मोहरा था राजकुमार जी