रक्षक बने भक्षक
आज समाचार पत्रों में मुख्य समाचार है कि लखनऊ के प्राइवेट मेडिकल कालेज में दाखिले से संबन्धित मामलों को रफ़ादफ़ा करने की साज़िश में हाई कोर्ट के पूर्व जज समेत छः लोग गिरफ़्तार। यह डील एक करोड़ की थी। हाई कोर्ट के पूर्व जज हैं — उड़ीसा हाई कोर्ट के पूर्व जज इसरत मसरूर कुद्दुसी। गिरफ़्तारी के बाद सबको सी.बी.आई. ने दिल्ली के तीस हजारी कोर्ट में पेश किया। कोर्ट ने सभी आरोपियों को सी.बी.आई. की हिरासत में भेज दिया गया। सी.बी.आई. अपने मुख्यालय में चार दिन तक उनसे पूछताछ करेगी। हमारी न्यायपालिका में व्याप्त भ्रष्टाचार की यह एक छोटी सी मिसाल है। मेरे एक मित्र सत्र न्यायालय में जज हैं। जब भी उनके साथ बैठकी होती है, वे हमेशा इंजीनियर, डाक्टर, आई.ए.एस द्वारा किए गए भ्रष्टाचार की चर्चा करते हैं। एक दिन मुझसे रहा नहीं गया और मैंने कह ही दिया कि भ्रष्टाचार की जननी न्यायपालिका है। मैंने कहा कि मेरे विभाग में किसी भी कर्मचारी की हिम्मत नहीं है कि मेरे ही कक्ष में मेरे सामने किसी से रिश्वत ले ले। लेकिन किसी भी कोर्ट में यह लेन-देन सबके सामने होता है। कोर्ट में पेशकार जज के सामने ही मुवक्किल से घूस लेता है और तब फाइल देखकर अगली डेट बताता है। कम पैसे मिलने पर वह फाइल छूने भी नहीं देता। वकील/ मुवक्किल और पेशकार के बीच इस लेनदेन को, ऐसा कोई भी नहीं होगा, जो कभी न्यायालय गया हो और नहीं देखा हो। जज साहब ने उत्तर दिया कि यह कोर्ट का दस्तूर है जो अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है। अपने भ्रष्टाचार को छुपाने के लिए इसे ‘दस्तूर’ का नाम दिया गया है। किसी भी जज ने इसे रोकने की कोशिश नहीं की। परिणाम यह निकला कि यह दस्तूर भयंकर भ्रष्टाचार में परिवर्तित हो गया और लोवर कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को प्रभावित करने लगा। दूसरी ताज़ी घटना है — पंजाब की नाभा जेल ब्रेक कांड के मुख्य आरोपी गोपी घनश्यामपुरिया को छोड़ने के लिए हुई एक करोड़ की डील के मामले की जांच के लिए यू.पी. के ए.डी.जी. कानून व्यवस्था आनन्द कुमार वृहस्पतिवार को अमृतसर रवाना हो गए। वे पंजाब पुलिस द्वारा गिरफ़्तार अपराधियों से पूछताछ कर रिश्वत कांड की हकीकत पता लगाने की कोशिश करेंगे। ज्ञात हो कि इस कांड में यू.पी. के एक सिनियर आई. पी..एस. अफसर का नाम जांच के दायरे में है। इस समय कई आई.ए.एस. अफसर भी भ्रष्टाचार के सिद्ध आरोपों में जेल में सजा काट रहे हैं। आखिर १९७० के बाद भारत में कौन सी बयार बही कि कोई भी महकमा भ्रष्टाचार से अछूता नहीं रहा? पैसे की हवस पिछले बीस वर्षों में इतनी बढ़ी है कि सारे नैतिक मूल्य तार-तार हो गए। इसके लिए अगर कोई सबसे ज्यादा जिम्मेदार है तो वे हैं राजनीतिक पार्टियां और मुख्य रूप से कांग्रेस पार्टी। राजनेताओं ने भ्रष्टाचार को आम आदमी का संस्कार बना दिया। इन लोगों ने समाज को जाति और मज़हब में इस तरह बांट दिया कि अपनी जाति के नेताओं द्वारा किया गया भ्रष्टाचार उस जाति के मतदाताओं को दिखाई ही नहीं पड़ता। इसे मतदाताओं ने सामाजिक स्वीकृति प्रदान कर दी है। लालू, मुलायम, मायावती, करुणानिधि आदि नेता इसी की फसल काट रहे हैं। जातिवाद भ्रष्टाचार को बढ़ाने में सबसे बड़ा सहायक है। आजकल कांग्रेस इन भ्रष्टाचारी नेताओं की सबसे बड़ी हमदर्द बन गई है। अपने कार्यकाल में भ्रष्टाचार की सारी सीमाएं तोड़ने वाली कांग्रेस कभी लालू की रैली में शामिल होती है, तो कभी अखिलेश और मायावती से गठबन्धन करती है तो कभी करुणानिधि से गलबहियां का खेल खेलती है। उसे भ्रष्ट और देशद्रोही हुरियत कान्फ़ेरेन्स को समर्थन देने में भी शर्म नहीं आती है। आजकल पप्पू भैया अमेरिका जाकर भ्रष्टाचार का उन्मूलन कर रहे हैं। मोदी राज में मन्त्री स्तर से तो भ्रष्टाचार समाप्त हो गया है, लेकिन निचले स्तर पर हर विभाग में यह ज्यों का त्यों कायम है। बच्चों को नैतिकता की शिक्षा देने का काम पहले माता-पिता और स्कूल किया करते थे। अब माता-पिता सारी जिम्मेदारी स्कूल को सौंपकर मजे ले रहे हैं और स्कूल में इसी समाज से आए शिक्षकों और कर्मचारियों का बहुमत है। आए दिन शिक्षको द्वारा अपनी ही शिष्याओं से बलात्कार की घटनाएं प्रकाश में आ रही हैं। अब बच्चे जो भी सीखते हैं उनका आधार टी.वी. और फिल्में हैं जिनपर किसी का नियंत्रण नहीं है। वे जो भी परस दें, बच्चे उसे ग्रहण करने के लिए वाध्य हैं। समझ में नहीं आता कि कौन सा अवतार आएगा जब भारत से भ्रष्टाचार खत्म होगा।