दोहे- स्वच्छता की चेतना
बिखरी हो जब गंदगी,तब विकास अवरुध्द !
घट जाती संपन्नता,बरकत होती क्रुध्द !!
वे मानुष तो मूर्ख हैं,करें शौच मैदान !
जो अंचल गंदा करें,पकड़ो उनके कान !!
पाठक जी तो कर रहे,सचमुच पावन काम !
सुलभ केंद्र अब बन गया,जैसे तीरथ धाम !!
फलीभूत हो स्वच्छता,कर देती सम्पन्न !
जहॉं फैलती गंदगी,नर हो वहॉं विपन्न !!
बनो स्वच्छता दूत तुम,करो जागरण ख़ूब !
नवल चेतना की “शरद”, उगे निरंतर दूब !!
अंधकार पलता वहॉं,जहॉं स्वच्छता लोप !
जागे सारा देश अब,हो विलुप्त सब कोप !!
मन स्वच्छ होगा तभी,जब स्वच्छ परिवेश !
नव स्वच्छता रच रही,नव समाज,नव देश !!
है स्वच्छता सोच इक,शौचालय अभियान !
शौचालय हर घर बने,तब बहुओं का मान !!
शौचालय में सोच हो,कूड़ा कूड़ादान !
तन-मन रखकर स्वच्छ हम,रच दें नवल जहान !
जीवन में आनंद तब,कहीं नहीं हो मैल !
रहें स्वच्छ,दमकें सदा,गलियां,सड़कें,गैल !!
सभी जगह हो स्वच्छता,तो सब कुछ आसान !
यही आज कहता “शरद”,है स्वच्छता मान !!
— प्रो.शरद नारायण खरे