संस्कार कहाँ से मिलेंगे आज जब नहीं रहे सयुंक्त परिवार,
दादा दादी का नहीं मिलता बच्चों को वो कहानी रूपी प्यार।
कागज के टुकड़े कमाने से फुर्सत नहीं है माता पिता को,
देकर चंद सिक्के औलाद को, सोचें वो खुशियां दे दी अपार।
आधुनिकता का कमाल देखो माँ मम्मी, पिता बन गए डैड,
खुद तक सीमित हो गए सभी, पश्चिम का हुआ भूत सवार।
लिव इन रिलेशनशिप में रहने को समझने लगे लोग शान,
नग्नता फैल गई फैशन के नाम पर, कुछ यूँ मचा हाहाकार।
संस्कृति रो रही, संस्कार तड़प रहे, इंसानियत मर ही गयी,
आँखों की शर्म मर गयी अब इज्जत लूटने लगी सरेबाज़ार।
भगत सिंह, नेता जी नहीं आदर्श रहे आज नौजवानों के,
सन्नी लियोन बनी पसंद, ऐसे बदल गए देखो उनके विचार।
देख करतूतें औलाद की, आखिर में टूट जाता भ्रम सारा,
फिर हाथ जोड़कर कहते वो औलाद ने बना दिये लाचार।
सुलक्षणा पैसे नहीं, देना तुम औलाद को वक़्त और संस्कार,
अब समझे हम संस्कारों की छाया में सुखी रहता है घर संसार।
©® डॉ सुलक्षणा