मुक्तक/दोहा

वक़्त

वक़्त   जैसा   भी  हो  वैसा  ही  काट  लेता  हूँ
ग़ैर  का  दर्द   भी  अक्सर  में  बाँट   लेता   हूँ
ज़िन्दगी तुझसे ये फुर्सत कभी मिले न  मिले
सुकूँ  के  लम्हों  को  ग़म  में भी छाँट लेता हूँ

अंकित शर्मा 'अज़ीज़'

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3 thoughts on “वक़्त

  • इतना ही बोहोत है मेरे लिए बहुत बहुत धंयवाद राजकुमार जी

  • राजकुमार कांदु

    वाह ! बस इतना ही कह सकता हूँ ।

    • इतना ही बोहोत है मेरे लिए बहुत बहुत धंयवाद राजकुमार जी

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