रणनीतिज्ञ
“सक्सेना मैम… मैम… सक्सेना मैम…”
आश्चर्य हुआ कि देश से इतनी दूर जर्सी की सड़क पर उसे कौन आवाज दे सकता है. फिर भी मुड़कर देखा तो एक नौजवान दौड़ता हुआ उसकी ओर आता दिखा और करीब आकर उसके चरणस्पर्श कर बोला “आप मुझे पहचान नहीं सकीं न ?”
“नहीं! नहीं पहचान सकी… आप कौन हैं और मुझे कैसे पहचानते हैं ?”
“दो साल मुझे विद्यालय में आये हो गये थे… सभी सेक्शन की शिक्षिकाएं मुझसे त्रस्त हो गई थीं… मैं बेहद ऊधमी बच्चा था… आख़िरकार मुझे सुधारने के लिए आपके सेक्शन में भेजा गया… आपने मुझे एक महीना ऊधम मचाने दिया बिना रोक-टोक के… एक महीना कुर्सी से बाँध कर रखा, कक्षा शुरू होने से लेकर कक्षा अंत होने तक… पूरे एक महीने के बाद जो आज़ादी मिली तो ऊधम-उत्पात खो गये थे…
“ओह्ह्ह! कौशल?” चहक उठी सक्सेना मैम.
— विभा रानी श्रीवास्तव